हम समाज और उसके नियमों और तौर तरीकों से इतना ज्यादा प्रभावित है इस तरह से हमारे भीतर समाज रम गया है कि हम उस को चाह कर भी अपने से अलग नही कर सकते हैं। हम अपना जीवन इस Society और इस Institutionalisation के “न होने की अवस्था में” सोच भी नहीं सकते हैं। इतना डर है हमारे अंदर — इतना संदेह है हमारे अंदर। आप यह देखिये — आप कुछ अनूठा करना चाहते हैं पर वह कार्य आप कर नहीं सकते हैं क्योंकि डर है कि क्या होगा अगर मैं Society के विपरीत जाता हूं तो।
मैं ना तो रस्मों की बात करता हूं — ना मैं परंपराओं की बात करता हूं — और ना ही मैं संस्कृतियों की बात करता हूं। हालाँकि हम इन सब से बहुत ज्यादा घिरे हुए हैं।
मैं बात करता हूं attachment कि। हम अभी अपने “वर्तमान-जीने-के तरीके” से इतना ज्यादा परिचित या अभ्यस्थ हो चुके हैं कि इस attachment से दूर जाना बहुत कठिन हो गया है। अगर हम बात करें freedom की complete Freedom की — आप जो चाहें अपने जीवन के साथ कर सकें यह ध्यान में रखते हुये कि कोई अन्य व्यक्ति आपके द्वारा किए गए कुछ actions से कष्ट में न पहुंचे। ध्यान से सोचिये, क्या वह कार्य आप कर सकते हैं?
हाँ, यह जरूर होगा कि आप के ऊपर लोगों की उम्मीदें रहेंगी। पर कहीं न कहीं इसमें उनका ही दोष है। क्योंकि आप अपनी खुशी अगर कहीं और धुंधते हैं तो इसका मतलब आप एक खुशी का जाल बुनते हैं। वह खुशी का जाल कभी भी नष्ट हो सकता है। यह हमको बाधाओं में डालता हैं। यह हमसे हमारी Freedom छीनता है। तो क्या हम सही में मुक्त हैं अगर हम किसी की खुशी को नियंत्रित कर सके — क्या हम सही में मुक्त हैं अगर हमारा होना या ना होना किसी को दुख या फिर सुख पहुँचता है। क्या हम सही में मुक्त हैं अगर हमारा कुछ समाज के विपरीत करने से दुसरो को पीड़ा होती हो — अगर ध्यान से देखा जाए तो वह कार्य उनसे कुछ खास संबंधित भी नहीं होता है। क्या आपको अभी भी यह लगता है कि आप सही में मुक्त हैं?
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