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लेटेस्ट उत्तराखंड न्यूज़ : क्रश कर के बीज फेंकता था बगल वाले प्लाट में, लहलहाते गांजे की खेती देखकर परिवार ने रिश्तेदारों से और ब्याज पर कर्ज लेकर बनाया देहरादून में मिलियन डॉलर बिजनेस।

भीड़ हमेशा उस रास्ते पर चलती है जो रास्ता आसान लगता है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं की भीड़ हमेशा सही रास्ते पर चलती है। अपने रास्ते खुद चुनिए क्योंकि आपको आपसे बेहतर और कोई नहीं जानता। और यह बात उत्तराखंड की शीतकालीन राजधानी देहरादून के होनहार बेटे मनीष रावत ने हाल ही में साबित की है।


उबाऊ काम के कारण थके-मांदे मनीष अक्सर घर पहुंचकर, अपने भविष्य के बारे में सोचते थे। वर्ष २०१६ में, ग्राफिक एरा से बी.टेक करने के बाद, आई.टी पार्क, सहस्त्रधारा रोड में, वह एक कंपनी में कस्टमर केयर एग्जीक्यूटिव के तौर पर काम कर रहे थे। आमतौर पर कॉल सेंटर में काम की शिफ्ट दिन प्रतिदिन बदलने के कारण उन्हें रात में सोने में परेशानी होती रहती थी। इस बारे में उन्होंने अपने सबसे प्रिये मित्र आलोक भट्ट को बताया। आलोक ने उन्हें हट्ट “गांडु” कह कर दुत्कार दिया। लेकिन फिर एक दिन आलोक ने मनीष को मेहुवाला के पास झुग्गियों में रहने वाले एक लड़के से मिलवाया। लड़के का नाम गुलफाम अख्तर था और वह गांजे की पुड़िया बेचाता था। गुलफाम 50 रुपये का गांजा 100 रुपये में देता था। मनीष ने देखा कि इस व्यवसाय में 100% लाभ प्राप्त होगा। इस प्रकार, उन्हे यह व्यवसाय काफी फायदेमंद लगा। तुरंत उन्होंने मारिजुआना को वैध बनाने के लिए एक फेसबुक पेज बनाया और सारे दोस्तों को आमंत्रित किया। जल्द ही इस पेज पर उनसे 163 फॉलोअर्स जुड़ गए। हालांकि जब उनकी बड़ी बहन रश्मि रावत को इस पेज के बारे में पता चला, उन्होंने बिना किसी देरी के इसके बारे में माता-पिता को बताया। मनीष के पिता जी ने उस दिन खुश होकर इंदिरा मार्केट से एक नई चमड़े की बेल्ट खरीदी। विपरीत हालातों से जूझकर, परेशान मनीष ने मारिजुआना को वैध बनाने का विचार छोड़ दिया। निराश होकर उन्होंने फेसबुक पेज डिलीट भी कर दिया।


एक रात वह छत पर कुछ गांजा क्रश कर रहे थे। उन्होंने देखा कि इस बार पेडलर ने बीजों से भरा पैकेट दिया। उसने पेडलर को संस्कृत में शाप दिया और पहाड़ी बोली में माँ-बहन की गलियाँ अलग से दी। बीज को बगल के बंजर प्लाट में फेंक कर, एक जॉइंट रोल करके वो नशे में चूर हो गया अर्थार्त भांड हो गया। गांजा अत्यंत कड़वा था ऐसा प्रतीत होता मानो गले में किसी ने मेंडक का मल रख दिया हो। लेकिन गांजे ने मनीष का कबुतर बना दिया। यह कार्यकर्म कई दिनों तक निरंतर चलता रहा। कुछ दिनों बाद मनीष ने देखा कि बगल वाले प्लाट में मारिजुआना के पौधे उग रहे हैं। इस करिश्माई दृश्य की देखकर, आस पड़ोस के लोगो का बड़ा मनोबल। द मशरुम लेडी (दिव्या रावत) के बाद, सम्पूर्ण उत्तराखंड में, “योर ओन स्टोनर बॉय” के नाम से फेमस होना चाहते है सबके चहेते मनीष।


“चढ़ते सूरज को सभी सलाम करते हैं” अब पुरा परिवार मिल कर रगड रहा है भांग। दिन रात बजते है रेह्गे म्यूजिक घर में अपना टाइम आएगा की टी-शर्ट पहन कर मनीष एमीवे बंटाई की आवाज़ में कहते हैं “अब है पुरे घर को नाज़”।


वह राष्ट्रीय किसान आंदोलन का हिस्सा बनना चाहते हैं और कोट-अनकोट मनीष कहते हैं - मैं भी एक किसान हूं।


लॉकडाउन के दौरान उत्तरखंड पुलिस ने की पूरी सहायता और मोबाइल एप्प के जरिये घर-घर पहुंचाया गांजा।अपनी पहली मेजर डील क्रैक करने के बाद चित्र में मनीष और उनके पिता जी बोले काला मुखौटा है हमारा ब्रांड एंब्लेम।

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